"Rich Dad Poor
Dad" की सीख और सेल्स मार्केटिंग जॉब करने वाले पिता की कहानी
परिचय:
रॉबर्ट कियोसाकी की किताब "Rich Dad Poor Dad" एक ऐसी पुस्तक है
जिसने लाखों लोगों की सोच को बदल दिया। यह किताब हमें सिखाती है कि अमीर और गरीब
की सोच में क्या अंतर होता है। इसमें लेखक के दो पिताओं का ज़िक्र है — एक “गरीब
पिता” जो उनका असली पिता है और दूसरा “अमीर पिता” जो उनके दोस्त के पिता हैं। इस
ब्लॉग में हम इसी सोच को एक सेल्स और मार्केटिंग जॉब करने वाले पिता के उदाहरण से
समझेंगे।
गरीब पिता बनाम अमीर पिता की सोच:
Poor Dad यानी असली पिता मेहनती, शिक्षित, और एक सरकारी नौकरी वाले हैं। वे हमेशा कहते हैं:
- "पढ़ाई करो, अच्छी नौकरी
पाओ।"
- "पैसे के पीछे मत
भागो, सुरक्षित रहो।"
- "जोखिम मत लो, सेविंग
करो।"
Rich Dad यानी दोस्त के पिता स्कूल ड्रॉपआउट हैं, लेकिन व्यावहारिक ज्ञान और निवेश की समझ
रखते हैं। वे कहते हैं:
- "पैसे के लिए काम
मत करो, पैसे को अपने लिए काम करने दो।"
- "एसेट्स बनाओ, लायबिलिटीज
नहीं।"
- "रिस्क लो, लेकिन समझदारी
से।"
सेल्स मार्केटिंग जॉब करने वाले पिता की कहानी:
मान लीजिए रमेश एक मिडिल क्लास परिवार से हैं और पिछले 10 वर्षों से एक FMCG कंपनी में सेल्स और
मार्केटिंग की नौकरी कर रहे हैं। उनकी सोच एक “Poor Dad” जैसी है।
वे सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन फिर भी महीने के अंत में पैसों की
कमी महसूस होती है। वे अपने बेटे को भी यही सिखाते हैं:
“बेटा, पढ़ाई में मन लगाओ ताकि तुम्हें अच्छी नौकरी मिले। बिज़नेस करना बहुत रिस्की
होता है।”
अब कल्पना कीजिए कि रमेश का एक दोस्त संजय, जो एक ही कंपनी में था, लेकिन उसने "Rich Dad" की सोच अपनाई। उसने
अपनी सेल्स स्किल्स को इस्तेमाल करके एक स्मॉल बिज़नेस शुरू किया — उसने एक डिजिटल
मार्केटिंग एजेंसी खोली, जहाँ वह लोकल बिज़नेस को ऑनलाइन प्रमोट करता है।
संजय ने सेल्स की वही स्किल्स जो नौकरी में इस्तेमाल होती थीं, अब अपनी कंपनी के लिए
इस्तेमाल कीं। धीरे-धीरे उसने टीम बनाई और 3 साल में उसका मासिक इनकम रमेश की सैलरी
से 5 गुना हो गया।
मुख्य अंतर:
सोच |
गरीब पिता (रमेश) |
अमीर पिता (संजय) |
पैसों की सोच |
सेविंग करना |
निवेश करना |
जोखिम |
डरते हैं |
समझदारी से लेते
हैं |
स्किल्स का उपयोग |
केवल नौकरी के लिए |
अपनी कंपनी के लिए |
समय का उपयोग |
फिक्स टाइम = फिक्स
इनकम |
स्केलेबल इनकम |
निष्कर्ष:
"Rich Dad Poor Dad" सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक सोच है। सेल्स और मार्केटिंग
जैसी स्किल्स अगर नौकरी तक सीमित कर दी जाएं, तो आपकी ग्रोथ भी सीमित हो जाती है।rich dad poor dad book review
लेकिन वही स्किल्स अगर आप "Rich Dad" की सोच के साथ इस्तेमाल करें, तो आप वित्तीय
स्वतंत्रता की ओर बढ़ सकते हैं।
अपने बच्चों को सिर्फ नौकरी की नहीं, फाइनेंशियल एजुकेशन की भी सीख दें — यही
असली विरासत होगी।
क्या आपने कभी अपनी स्किल्स को बिज़नेस में बदलने की सोची है? नीचे कमेंट करें!