मित्रो आज देश के उन सेवाकर्मीयो के बारे में लिख रहा हु जो आज के डिजिटल ज़माने में वो नाम खो गया है ... वे है डाकिया...... जी हा डाकिया ये वही लोग है जो डिजिटल क्रान्ति आने के बाद उनका नाम गुम सा हो गया है ...
ये वो लोग है जो SMS,EMAIL & SOCIAL MEDIA WHATSAPP आने से हम उन्हें भुल गए है। आज भी मुझे याद है जब हमारे गांव में साइकल की घंटी बजाते हुए डाकिया आता था , तब हम घर से खुद पे खुद बहार आकर उनसे पूछते थे की हमारा कोई खत आया है क्या..? डाकिया डाक लाया', फिल्म 'पलकों की छांव में' का ये गीत जब गुलज़ार साहेब ने लिखा होगा तो जरूर चिट्ठी-पत्री का जमाना होगा और उनकी सच्ची सेवा की वजह से ये प्यारा सा गीत लिखे ।
डाकिया ही आज हमारे देश के हर कोने में जैसे की शहर ,गली ,मुहल्ले यहातक गांव के दूर दराज इलाके कसबे में अगर कोई जाता है तो वह है डाकिया।
आज यह डाकिया भी किसी योद्धा से काम नहीं है ,जहा एक तरफ देश में कोरोना की वजह से लॉक डाउन है तो सभी चीजे ट्रांसपोर्टेशन कुरियर बंद है और बंद होने के कारण आज कई ऐसे अतिआवश्यक वस्तु है ( Medicine/surgical kits/diagnostic material /parcel/Dr requirement materials ) का डिलीवरी आज हमें डाकिया ही दे रहा है आज हम उन डाकियो को सलाम करते है जो आज पुलिस/डॉक्टर्स/नर्सेस /पारा मेडिकल स्टाफ/ सफाईकर्मी के बाद यह भी एक हमारे योद्धा जैसे है जो अपनी ड्यूटी लॉक डाउन में बखूबी निभा रहे है।
भारतीय पोस्ट ऑफिस सिर्फ चिट्टी, लेटर ,पार्सल के अलावा बैंकिंग भी करती है जैस मनी आर्डर आज यह डाकिया है जो लोगो के घर घर जाकर उनको उनके पैसे पहुंचाते है।
जय हिंद।